अपना बचपना मारिये, उसका बचपन नहीं!
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जबकि रिपोर्ट ये कहती है कि 80% लोग अपने जॉब में खुश नहीं हैं, डिप्रेशन, हार्ट अटैक, सुगर, जैसी बीमारियाँ आम हो रहीं हैं, आज का नर्सरी का बच्चा जब जॉब के लायक होगा, तब तक, आज की जॉब्स में से बहुत सी जॉब एक्सिस्ट ही नहीं करेंगी.
दुनिया मोबाइल फ़ोन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सोशल मिडिया में रिश्ते खोज रही होगी, साफ़ हवा, पानी के लिए मारामारी मच रही होगी, आज का बाल दिवस बनाने वाला बालक, कल बालों का ट्रांसप्लांट कराएगा, उन्हें डाई की मदद से काला रखेगा, आखों पर चश्मा होगा, और नाम पर मास्क …….
तो इन हालातों में, उसे किसी भी परिस्थितियों खुश रहना सिखाइए, सिखाइए, कि सब मुमकिन है, सिखाइए की रिश्ते अहम् होते हैं, सिखाइए जब कुछ भी नहीं दिख रहा हो तो जिंदगी कैसे तलाशें, ये भी सिखाइए की जिंदगी की भागदौड़ में वो ढेरों फैक्टर्स, फोर्मुले, आंसर जो बोर्ड एग्जाम के लिए याद किये थे, काम नहीं आयेंगे, अगर कुछ काम आते हैं तो लोगों से जुड़े कैसे और जोड़े कैसे रखें, सिखाइए कि तेजी से बदलती दुनिया में सीखते कैसे रहें… जी हाँ, अपना बचपना मारिये, उसका बचपन नहीं!

